वैसे तो उत्तर प्रदेश में ऐसे कई माफिया रहे हैं जिनका नाम अंडरवर्ल्ड से जुड़ा रहा है पर श्री प्रकाश शुक्ला एक ऐसा नाम था जिससे जनता ही नहीं बल्कि यूपी की पुलिस और नेता भी खौफ खाते थे. श्री प्रकाश शुक्ला 90 के दशक में यूपी का सबसे बड़ा डॉन था जो कि खौफ और आतंक का दूसरा नाम बन गया था. इसका जन्म गोरखपुर के ममखोर गांव में हुआ था. इसके पिता स्कूल में शिक्षक थे. एक समय यह अपने गांव का मशहूर पहलवान हुआ करता था.
1993 में एक युवक ने श्री प्रकाश शुक्ला की बहन को देखकर सीटी बजा दी थी, इस पर श्री प्रकाश ने उस युवक की हत्या कर दी. यह उसके द्वारा किया गया पहला जुर्म था. इस हत्या के बाद वह जुर्म की दुनिया में घुसता ही चला गया. इस हत्या के बाद श्री प्रकाश पुलिस से बचने के लिए किसी तरह से बैंकॉक चला गया, वह काफी दिनों तक बैंकॉक में ही रहा पर जब बैंकॉक से लौटकर आया तो उसने अपराध की दुनिया में ही रहने का मन बना लिया था. इसी लिए उसने मोकामा बिहार का रुख किया और सूरजभान गैंग में शामिल हो गया.
बाहुबली बनकर श्री प्रकाश शुक्ला जुर्म की दुनिया में नाम कमा रहा था, इसी दौरान इसने 1997 में राजनेता और कुख्यात अपराधी वीरेंद्र शाही की लखनऊ में हत्या कर दी. इस हत्या के बाद श्री प्रकाश का नाम सुर्खियों में आ गया था. इसके बाद इतने हत्या, अपहरण और अवैध वसूली की बहुत सी वारदातों को अंजाम दिया और जो भी इसके बीच में आता उसे मारने में श्रीप्रकाश जरा भी देर नहीं करता था. पुलिस के पास श्री प्रकाश की कोई तस्वीर तक नहीं थी. इन सब गुनाहों के साथ-साथ पूरब से लेकर पश्चिम तक रेलवे के सभी ठेकों पर उस का राज चलता था.
श्री प्रकाश के ताबड़तोड़ अपराध सरकार और पुलिस के लिए सिरदर्द बन चुके थे. सरकार ने इसके खातमे का मन बना लिया था. इससे निपटने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स का निर्माण किया गया. इस फोर्स का पहला टास्क श्री प्रकाश को जिंदा या मुर्दा पकड़ना था. पुलिस और श्रीप्रकाश के बीच पहली मुठभेड़ सितंबर 1997 में हुई थी, इस मुठभेड़ में श्रीप्रकाश तो बच निकला था पर पुलिस का एक जवान शहीद हो गया था. इसके बाद श्री प्रकाश की दहशत और ज्यादा बढ़ गई थी.
श्री प्रकाश शुक्ला ने जून 1998 में बिहार सरकार के तत्कालीन मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की गोली मारकर हत्या कर दी. हत्या के समय मंत्री के सिक्योरिटी गार्ड मौजूद थे. वह अपनी कार से उतर ही रहे थे कि एके-47 से लैस चार बदमाशों ने उन पर फायरिंग शुरू कर दी और वहां से फरार हो गए. इसके बाद श्री प्रकाश ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी ले ली. 6 करोड़ की सुपारी लेने की खबर स्पेशल टास्क फोर्स के लिए बम गिरने जैसी थी.
इसके बाद स्पेशल टास्क फोर्स हरकत में आई और उसने श्री प्रकाश के मोबाइल को सर्विलांस पर ले लिया. सितंबर 1998 को स्पेशल टास्क फोर्स को खबर मिली कि श्री प्रकाश दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है, इसके बाद स्पेशल टास्क फोर्स उसकी कार का पीछा करने लगती है, उसकी कार जैसे ही इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, एसटीएफ टीम ने उसे ओवरटेक कर के रास्ता रोक दिया. पुलिस ने उसे सरेंडर करने को कहा, वह नहीं माना और पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी, पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्री प्रकाश शुक्ला मारा गया. दोस्तों तो कुछ ऐसी है श्री प्रकाश शुक्ला की कहानी.