राठी गैंग का शार्प शूटर कुख्यात देवपाल राणा कभी हरिद्वार में पुलिस कांस्टेबल हुआ करता था. इसे विभिन्न अपराधिक घटनाओं में शामिल होने के चलते बाद में सस्पेंड कर दिया गया था. इसके बाद शिवपाल पूर्ण रूप से जुर्म की दुनिया में उतर गया था, यही नहीं विभिन्न मामले में जेलो में जाना और फिर जमानत लेकर छूटते छूटाते वह नेता भी बन गया. ननोता सीट से अपनी पत्नी को ब्लॉक प्रमुख का चुनाव लड़वाया और उसे जिताने में कामयाबी पाई. इसके अलावा वह खुद भी वर्ष 2002 और 2007 में हरिद्वार जिले से बसपा टिकट पर चुनाव लड़ने की चाहत रखता था, लेकिन उसकी यह तमन्ना पूरी नहीं हो सकी.
देवपाल के आपराधिक रिकॉर्ड पर नजर डाले तो उसके खिलाफ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में हत्या, लूट, गैंगवार और डकैती के कुल 16 से भी ज्यादा मुकदमे चल रहे थे. बताया गया है कि पुलिस की नौकरी करते समय एक सुनार के साथ लूटपाट की घटना में शिवपाल का नाम उजागर हुआ था. इसके बाद उसने सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर के अलावा हरिद्वार जिले में कई वारदातों को अंजाम दिया. 5 अगस्त 2014 को रुड़की उपकारागार में हुई गैंगवार में शामिल होने के बाद देवपाल और अधिक सुर्खियों में आ गया.
रुड़की उपकारागार घटना में देवपाल पर कुख्यात अमित भूरा, सुशील चौधरी और विशु के साथ मिलकर हमला करने का आरोप था. इसमें चीनू के तीन आदमियों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी, जबकि 6 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे. इसके बाद देवपाल को गिरफ्तार कर लिया गया था. इसके बाद रूड़की कोर्ट में पेशी के दौरान देवपाल पर कुछ लोगों ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर देवपाल की हत्या कर दी. इसकी हत्या के तार ना केवल ऋषिपाल राणा बल्कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कुख्यात संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा से भी जुड़े हैं.
सूत्रों की माने तो जिले में कई जमीनों के मामले में देवपाल जीवा के निशाने पर था. इसके पहले भी जीवा ने कई बार देवपाल की हत्या की कोशिश की लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली थी. जुर्म की दुनिया में जीवा के नाम का सिक्का चलता है. यही कारण है कि राठी गैंग समेत अन्य गैंगो के साथ जीवा का 36 का आंकड़ा रहा है. सूत्रों की माने तो जमीन विवाद के चलते ही दोनों में कई बार ठनी, जहां ऋषिपाल राणा देवपाल से रंजीत रखता था, तो इसी का फायदा जीवा भी उठाना चाहता था.
कहते हैं जुर्म की दुनिया का अंत भला नहीं होता, लेकिन देवपाल जुर्म से ज्यादा राजनीति का शिकार हुआ है. देवपाल राजनीति की दुनिया में कदम रख कर सफेद लिबास ओढना चाहता था, लेकिन शायद उसे पता नहीं था कि राजनीति की दुनिया जुर्म की दुनिया से ज्यादा खतरनाक हो सकती है. ऋषिपाल राणा से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता उसे भारी पड़ गई, जिसका खामियाजा देवपाल को अपनी जान गवा कर चुकाना पड़ा. तो कुछ ऐसी है देवपाल राणा की कहानी